Some Books of Shri Harish Bhadani

Some Books of Shri Harish Bhadani

बुधवार, 23 जुलाई 2008

सड़कवासी राम से


सड़कवासी राम !

न तेरा था कभी, न तेरा है कहीं
रास्तों-दर-रास्तों पर
पांव के छापे लगाते ओ अहेरी
खोलकर
मन के किवाड़े सुन !
सुन कि सपने की
किसी सम्भावना तक में नहीं
तेरा अयोध्या धाम
सड़कवासी राम !
सोच के सिरमौर, ये दासियो दसानन
और लोहे की ये लंकाएं
कहां है कैद तेरी कुम्भजा
खोजता थक
बोलता ही जा भले तू
कौन देखेगा
ये चितेरे
अलमारी में रखे दिन
और चिमनी से निकलें शाम
सड़कवासी राम !
पोर घिस-घिस
क्या गिने चौदह बरस तू
गिन सके तो
कल्प सांसों के गिने जा
गिन कि
कितने काटकर फैंके गये है
एषणाओं के पहरुए
ये जटायु ही जटायु
और कोई भी नहीं
संकल्प का सौमित्र
अपनी धड़कनों के साथ
देख बामन-सी बड़ी यह जिन्दगी
करली गई है
इस शहर के जंगलों के नाम
सड़कवासी राम !

आदमी की आंखों में

आंखों में घृणा - होठ पर चेंटी लहू की भूख,
हाथ में हथियार लेकर
आदमी में से निकलता है जब
आदमी जैसा ही
मगर आदिम
तभी हो जाता है
उसका ना कातिल - जात कातिल
और उसका धर्म - सिर्फ हत्या।

वह पहले
अपने आदमी को मार कर ही
मारता है दूसरे को

आदिम के हाथों
आदमी की हत्या का दाग
आदिम को नहीं
आदमी की दुनिया को लगा
फिर लगा
फिर-फिर लगा है।

सोच के विज्ञान से
धनी हुए लोगो
लहू के गर्म छीटों से
इस बार भी
चेहरा जला हो
गोलियों ने तरेड़ी हो
मनिषा पर पड़ी
बर्फ की चट्टान तो आओ
अपने ही भीतर पड़े
आद्फिम का बीज ही मारें
पुतलियों में आ बैठती
घृणा की पूतना को छलनी करें
आंखों को बनाएं झील
और देखें.... देखते रहें
आदमी की आंखों में
आदमी ही चेहरा !

कैसे दे देते

जीना बहुत जरूरी समझा
इसीलिए सारे सुख
गिरवी रख
लम्बी उम्र कर्ज में ले ली
लेकिन
जितने सपने साथ निभने आये
हमसे भी ज्यादा मुफलिस निकले वे
जैसा भी था
सड़काऊ था दर्द मलंग
हमारा था
लेकिन यादें तो बाजारू निकली
खुद तो नाची
टेढ़ाकर-कर हमें नचाया
गली-गली बदनाम कर दिया
कई-कई आए
अपने होकर
सिर्फ सूद में ही ले लेने
आखर खिला-पिलाकर
पाले-पोषे गए इरादे
ये अपने थे
या थे शाइलाक ?

उजियारा पी
पगे इरादों को ही पाने
उथल दिया सारी धरती को
काट दिए पर्वती कलेजे
रोकी सब आवारा नदियां
बांध दिया सागर कोनों में
इतना जीने बाद मिले वे
सिर्फ सूद में ही कैसे दे देते ?
कर्ज उमर का
फक़त इसलिए लिया था
कागज पर लिखवाए गए
सभी समझौते तोड़ें
सूद चुकाने का कानुन जलाएं
अपने हाथों
लिखे इबारत
जिसे हमारे बाद
जनमने वाली पीढ़ी
अपने समय मुताबिक बांचे।



सड़कवासी राम से, प्रकाशक: धरती प्रकाशन, गंगाशहर,
बीकानेर-334001 संस्करण : 1985

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