Some Books of Shri Harish Bhadani

Some Books of Shri Harish Bhadani

मंगलवार, 17 जून 2008

सरयु सखाया से...

उतर कहां से आये हैं ये
वह घर मुझे बता !
ऊपरवाले आसमान में
कभी न थमती
पिण्ड और ब्रह्माण्ड क्रिया को
समझ अधूरी
बता, इसे फिर समझूं कैसे ?
किसि ओर से देखं
दीसे चका चौंध ही
है केवल अचरज ही अचरज,
फिर जानूं, पहचानूं कैसे ?
रचना के अनगिन रूपों में
इस क्षण तक तो
किसी एक को
अथ ही न आया
आखर की सीमा में,
ओ मेधापत !
तू इनका पहला प्रस्थान बता !
उतर कहां से आये हैं ये
वह घर मुझे बता !
मैं इन्को इतना ही जानूं
ये सारे ही
लोकपाल हैं
इनके अपने-अपने लोक,
रमें गगन में
रमें जगत के
अचराचर में,
सुन रे रमणिये !
ऎसा रमना
आकर मुझे बता!
उतर कहां से आये हैं ये
वह घर मुझे बता!
सोचूं भी जो
मूलरूप
ये सारे ही एक
फिर इनका यह मूल रूप ही
खैसे-कैसे
होता रहे अनेक ?
बुन-बुन खुलती
खुल-खुल बुनती
इन सबकी संरचनाओं का
कबिरा, सबब बता।
उतर कहां से आये हैं ये
वह घर मुझे बता !
वामन जैसा
एक प्रश्न यह
दीर्घतमस मैं नहीं अकेला
पूछे सब ज्ञानी-विज्ञानी,
अगर एक यह नही जाना तो
जा, जानते, मैं अज्ञानी,
क्या है इस कोसा के पीछे
सूत्रधार जी ।
परदा उठा दिखा !
वह सच मुझे बता !
उतर कहां से आये हैं ये
वह घर मुझे बता !