- शम्भु चौधरी
हरीश भादानी जिनका अभी-अभी अपनी उम्र के 75 साल पूरे करने पर बीकानेर में एक तीन द्विवसीय भव्य समारोह किया गया है। हरीश भादानी के बीकानेर में होने वाले अभिनन्दन समारोह में उनकी लोकप्रियता का जो दर्शन हुआ। वह वास्तव में कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। हरीश भादानी वैसे तो राजस्थान और देश के जाने माने जनकवि हैं ही, लेकिन स्थानीय स्तर पर उनकी जो लोकप्रियता है उसको देखकर तो चुनावी राजनेता भी कभी-कभी भयभीत हो जाते हैं। इनके व्यक्तित्व ने बीकानेर नगर के होली के हुड़दंग में एक नई दिशा देने का प्रयास किया। खेड़ा की अश्लील गीतों के स्थान पर भादानीजी ने नगाड़े पर ग्रामीण वेशभूषा में सजकर समाज को बदलने वाले गीत गाने की परम्परा कायम की, उससे बीकानेर के समाज में बहुत अच्छा प्रभाव परिलक्षित हुआ था। उनका सरल और निश्चल व्यक्तित्व बीकानेर वासियों को बहुत पसन्द आता है। भादानीजी में अहंकार बिल्कुल नहीं है। इनके व्यक्तित्व में कोई छल छद्म या चतुराई नहीं है।
हरीश भादानी ने अपने परिवारिक जीवन में भी इसी प्रकार की जीवन दृष्टि रखी है और ऐसा लगता है कि उनको यह संस्कार अपने पिता श्री बेवा महाराज से प्राप्त हुए हैं। उनके गले का सुरीलापन भी उनके पिता की ही देन समझी जानी चाहिए। लेकिन उनके पिताश्री के सन्यास लेने से भादानीजी अपने बचपन से ही काफी असन्तुष्ट लगते हैं और इस आक्रोश और असंतोष के फलस्वरूप उनका कोमल हृदय गीतकार कवि बना।
भादानीजी ने अपनी रचना यात्रा में त्रैमासिक वातायन के प्रकाशन को एक मुख्य पड़ाव समझा है और यह सही भी है। राजस्थान में अजमेर से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका लहर और मधुमति के अलावा कोई साहित्यिक पत्रिका उस समय नहीं थी। हरीश भादानी ने वातायन का प्रकाशन करके हिन्दी साहित्य जगत में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष साहित्यिक पत्रिका को जन्म दिया था। बुद्धिजीवी साहित्यकार वातायन में छपने के लिए लालायित रहते थे। भादानी ने अपने आर्थिक स्रोतों का षोषण करके वातायन को जिंदा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। डॉ. पूनम दईया और सरल विशारद ने भी वातायन को अपनी आजीविका का साधन नहीं मानते हुए निष्ठापूर्वक भादाणी का साथ दिया था। स्थानीय दैय्या गली से प्रकाशित होने वाले वातायन की लोकप्रियता को देखकर कुछ स्थानीय और कुछ बाहर के साहित्यकारों को एक प्रकार की ईष्र्या भी होती थी। कुछ भी हो वातायन ने हिन्दी साहित्य जगत में एक मुकाम हासिल कर लिया था। भादानी की वातायन के प्रति जो प्रतिबद्धता थी उसके चलते उन्होंने धीरे-धीरे अपनी हवेली तक बेच दी। और इस प्रकार हरीश भादानी मुफलिसी की हालत में पहुंचने लगे। इसका असर उनके परिवार पर भी पड़ना स्वाभाविक था।
पुत्रियाँ बड़ी हो गई थी उनकी शादी की भी फिक्र सताने लगी। जो लोग हरीश भादानी की जीवन षैली और प्रगतिशीलता को जानते समझते हैं उनका यह मानना है कि हरीश भादानी ने अपनी दोनों बड़ी बच्चियों का अर्न्तजातीय विवाह करने का मन बनाया। और इसको क्रियान्वित भी किया। भादानी ने अपनी बच्चियों को जो संस्कार दिए थे उसके चलते उन दोनों बच्चियों ने अपनी ससुराल में बहुत अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त की। और आज वे सुखी जीवन जी रही हैं। सरला माहेश्वरी के पति अरूण माहेश्वरी ने सरला को वैचारिक स्तर पर तराशा और उसको संसद तक पहुंचाने में सहायता की। इसी प्रकार माली समाज के वाम विचारों के जुगल गहलोत ने पुष्पा गहलोत को जनवादी आंदोलन के लिए तैयार किया और आज बीकानेर में पुष्पा जनवादी महिला मोर्चा की प्रमुख कार्यकत्र्ता के रूप में कार्यरत हैं। हरीश भादानी जैसा सरल सहज स्वभाव का व्यक्ति इतना लोकप्रिय और इतना प्रभावशील बुद्धिजीवी साहित्यकार होते हुए आम जनता के बीच इस प्रकार मिले जुले रहते हैं कि किसी को यह अहसास ही नहीं होता हैं कि वह इतने बड़े साहित्यकार के साथ बात कर रहे हैं।
हरीश भादानी केवल जनकवि ही नहीं हैं बल्कि एक श्रेष्ठ चिंतक भी हैं । जिन्होंने अपने सिद्धांतों के अनुकूल जीवन जीया है । आपकी रचना यात्रा जिस तरह और जिन परिस्थितियों में प्रारंभ हुई, उसको जानने वाले यह कहते हैं कि एक समय था जब हरीश भादानी चांदी के चम्मच से खाना खाते थे। बीकानेर में अकूत अचल सम्पत्ति के धनी थे। इनके पिताश्री बेवा महाराज के सन्यास लेने के बाद भादानीजी अपने दादा के सान्निध्य में रहे। छबीली घाटी में उनका भी विशाल भवन था। वह सदैव भक्ति संगीत और हिंदी साहित्य के विद्वानों से अटा रहता था। हरीश भादानी प्रारंभ में रोमांटिक कवि हुआ करते थे। और उनकी कविताओं का प्रभाव समाज के सभी वर्गों पर एकसा पड़ता था। भादानी के प्रारंभिक जीवन में राजनीति का भी दखल रहा है। लेकिन ज्यों-ज्यों समय बीतता गया हरीश भादानीजी एक मूर्धन्य चिंतक और प्रसिद्ध कवि के रूप में प्रकट होते गए। हरीश भादानीजी को अभी तक एक उजली नजर की सुई 1967-68 एवं सन्नाटे के शिलाखण्ड पर 1983-84 पर सुधीन्द्र काव्य पुरस्कार राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार, द्वारा सुधीन्द्र पुरस्कार एक अकेला सूरज खेले पर मीरा पुरस्कार, पितृकल्प पर बिहारी सम्मान महाराष्ट्र, मुम्बई से ही प्रियदर्शन अकादमी से पुरस्कृत, राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर से विशिष्ठ साहित्यकार के रूप में सम्मानित किए जा चुके हैं।
जनकवि हरीश भादानी के 75वें वर्ष पूरे करने पर तीन दिवसीय दृष्टि पर्व समारोह का आयोजन बीकानेर में हुआ। 9 और 10 जून को हरीश भादानी के रचनाकर्म पर विस्तृत चर्चा हुई। इस समारोह में मध्यप्रदेश के शिव कुमार मिश्र जैसलमेर के आईदान भाटी, जोधपुर के मरूधर मृदुल डॉ. जगदीश चतुर्वेदी, विमल वर्मा, अरूण माहेश्वरी आदि ने सक्रिय भागीदारी निभाई। स्थानीय लेखकों में मालचंद तिवाड़ी, नन्दकिशोर आचार्य, पुरुषोत्तम आसोपा, सरल विशारद, श्री लाल जोशी आदि अनेक बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों ने भी आलोचनात्मक भागीदारी की।
11 जून को हरीश भादानी का अभिनन्दन समारोह आयोजित हुआ। इससे पहले नारायण रंगा पुत्र प्रसिद्ध गीतकार मोतीलाल रंगा पुत्र प्रसिद्ध गीतकार मोतीलाल रंगा ने भादानी के गीतों की संगीतमय प्रस्तुति पेश की। अभिनन्दन समारोह की अध्यक्षता पं.विभूषण से अलंकृत प्रसिद्ध अर्थशास्त्री सुधारों की बड़ी गुवाड़ निवासी डॉ विजय शंकर व्यास ने की। प्रवासी आलोचक शिवकुमार मिश्र समारोह के मुख्य अतिथि थे। इस सत्र का संचालन सरल विशारद ने अनूठे और अनोखे ढंग से किया। सरल जी ने हरीश भादानी के जीवन के विरोधाभासों को बताते हुए भादाणी जी की पत्नी श्रीमती जमुना, साहित्यकार नंदकिशोर आचार्य की पत्नी चन्द्रकला को मंच पर आमंत्रित किया और उनके सामने सरल जी ने भादानी जी के जीवनशैली के बारे में विस्तार से बातें बताई। सरल जी के अनुसार भादानी जी अपने जीवन में जोड़ने के क्रम के माहिर रहे हैं । इस अवसर पर उनकी पुत्री और पूर्व सांसद श्रीमती सरला माहेश्वरी ने अपने बचपन से लेकर विवाह तक का मार्मिक विवरण प्रस्तुत किया और बताया कि उन्होंने किस प्रकार अभाव की जिंदगी जी है। उनके पिता भादानी जी को यह पता ही नहीं रहता था कि वह कौनसी कक्षा और किस स्कूल या कॉलेज में शिक्षा ग्रहण कर रही है। लेकिन वे इतना जरूर जानती थी कि उनके पिता षहर के एक प्रतिष्ठित कवि हैं । शहर में उनका काफी आदर सम्मान होता है। सरला माहेश्वरी ने संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि उनके पिताश्री ने आर्थिक रूप से बहुत कुछ खोया परन्तु प्रतिष्ठा की दृष्टि से उन्होंने बहुत कुछ पाया और समाज को एक प्रगतिशील दिशा देने में सफलता प्राप्त की।
श्री हरीश भादानी देश के बड़े कवि हैं। श्री हरीश जी अपनी कविता ‘‘ये राज बोलता स्वराज बोलता....’’ एवं ‘‘रोटी नाम संत हैं....’’ दिल्ली के इंडिया गेट के आगे प्रस्तुत की थी। उनकी इस स्तर की कविताएं हैं। लोग इनकी कविताओं को गाते हैं, गुनगुनाते हैं। डॉ. जगदीश्वर चतुर्वेदी जो कि बंगाल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। उन्होंने अपने भाषण में श्री हरीश जी की कविताओं में स्थानीयता के पुट को नकारते हुए कहा कि ये उनको राष्ट्रीय स्तर पर जाने से रोकता है, परंतु श्री भादानीजी की हिन्दी और राजस्थानी की कविताओं की राष्ट्रीय पहचान पहले से प्राप्त हो चुकी है।
11 जून 1933 बीकानेर में (राजस्थान) में आपका जन्म हुआ। आपकी प्रथमिक शिक्षा हिन्दी-महाजनी-संस्कृत घर में ही हुई। आपका जीवन संघर्षमय रहा । सड़क से जेल तक कि कई यात्राओं में आपको काफी उतार-चढ़ाव नजदीक से देखने को अवसर मिला । रायवादियों-समाजवादियों के बीच आपने सारा जीवन गुजार दिया। आपने कोलकाता में भी काफी समय गुजारा। आपकी पुत्री श्रीमती सरला माहेश्वरी ‘माकपा’ की तरफ से दो बार राज्यसभा की सांसद भी रह चुकी है। आपने 1960 से 1974 तक वातायन (मासिक) का संपादक भी रहे । कोलकाता से प्रकाशित मार्क्सवादी पत्रिका ‘कलम’ (त्रैमासिक) से भी आपका गहरा जुड़ाव रहा है। आपकी प्रोढ़शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा पर 20-25 पुस्तिकायें राजस्थानी में। राजस्थानी भाषा को आठवीं सूची में शामिल करने के लिए आन्दोलन में सक्रिय सहभागिता। ‘सयुजा सखाया’ प्रकाशित। आपको राजस्थान साहित्य अकादमी से ‘मीरा’ प्रियदर्शिनी अकादमी, परिवार अकादमी(महाराष्ट्र), पश्चिम बंग हिन्दी अकादमी(कोलकाता) से ‘राहुल’, । ‘एक उजली नजर की सुई(उदयपुर), ‘एक अकेला सूरज खेले’(उदयपुर), ‘विशिष्ठ साहित्यकार’(उदयपुर), ‘पितृकल्प’ के.के.बिड़ला फाउंडेशन से ‘बिहारी’ सम्मान से आपको सम्मानीत किया जा चुका है ।
हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें:
अधूरे गीत (हिन्दी-राजस्थानी) 1959 बीकानेर।
सपन की गली (हिन्दी गीत कविताएँ) 1961 कलकत्ता।
हँसिनी याद की (मुक्तक) सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर 1963।
एक उजली नजर की सुई (गीत) वातायान प्रकाशन, बीकानेर 1966 (दूसरा संस्करण-पंचशीलप्रकाशन, जयपुर)
सुलगते पिण्ड (कविताएं) वातायान प्रकाशन, बीकानेर 1966
नश्टो मोह (लम्बी कविता) धरती प्रकाशन बीकानेर 1981
सन्नाटे के शिलाखंड पर (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर1982।
एक अकेला सूरज खेले (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1983 (दूसरा संस्करण-कलासनप्रकाशन, बीकानेर 2005)
रोटी नाम सत है (जनगीत) कलम प्रकाशन, कलकत्ता 1982।
सड़कवासी राम (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1985।
आज की आंख का सिलसिला (कविताएं) कविता प्रकाशन,1985।
विस्मय के अंशी है (ईशोपनिषद व संस्कृत कविताओं का गीत रूपान्तर) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1988ं
साथ चलें हम (काव्यनाटक) गाड़ोदिया प्रकाशन, बीकानेर 1992।
पितृकल्प (लम्बी कविता) वैभव प्रकाशन, दिल्ली 1991 (दूसरा संस्करण-कलासन प्रकाशन, बीकानेर 2005)
सयुजा सखाया (ईशोपनिषद, असवामीय सूत्र, अथर्वद, वनदेवी खंड की कविताओं का गीत रूपान्तर मदनलाल साह एजूकेशन सोसायटी, कलकत्ता 1998।
मैं मेरा अष्टावक्र (लम्बी कविता) कलासान प्रकाशन बीकानेर 1999
क्यों करें प्रार्थना (कविताएं) कवि प्रकाशन, बीकानेर 2006
आड़ी तानें-सीधी तानें (चयनित गीत) कवि प्रकाशन बीकानेर 2006
अखिर जिज्ञासा (गद्य) भारत ग्रन्थ निकेतन, बीकानेर 2007
राजस्थानी में प्रकाशित पुस्तकें
बाथां में भूगोळ (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1984
खण-खण उकळलया हूणिया (होरठा) जोधपुर ज.ले.स।
खोल किवाड़ा हूणिया, सिरजण हारा हूणिया (होरठा) राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति जयपुर।
तीड़ोराव (नाटक) राजस्थानी भाषा-साहित्य संस्कृति अकादमी, बीकानेर पहला संस्करण 1990 दूसरा 1998।
जिण हाथां आ रेत रचीजै (कविताएं) अंशु प्रकाशन, बीकानेर।
साभारः बीकानेर एक्सप्रेस, बीकानेर।
पताः छबीली घाटी, बीकानेर फोनः 09413312930
इनकी चार कविताऎं:-
1.
मैंने नहीं
कल ने बुलाया है!
खामोशियों की छतें
आबनूसी किवाड़े घरों पर
आदमी आदमी में दीवार है
तुम्हें छैनियां लेकर बुलाया है
सीटियों से सांस भर कर भागते
बाजार, मीलों,
दफ्तरों को रात के मुर्दे,
देखती ठंडी पुतलियां
आदमी अजनबी आदमी के लिए
तुम्हें मन खोलकर मिलने बुलाया है!
बल्ब की रोशनी रोड में बंद है
सिर्फ परछाई उतरती है बड़े फुटपाथ पर
जिन्दगी की जिल्द के
ऐसे सफे तो पढ़ लिये
तुम्हें अगला सफा पढ़ने बुलाया है!
मैंने नहीं
कल ने बुलाया है!
2.
क्षण-क्षण की छैनी से
काटो तो जानूँ!
पसर गया है / घेर शहर को
भरमों का संगमूसा / तीखे-तीखे शब्द सम्हाले
जड़े सुराखो तो जानूँ! / फेंक गया है
बरफ छतों से
कोई मूरख मौसम
पहले अपने ही आंगन से
आग उठाओ तो जानूँ!
चैराहों पर
प्रश्न-चिन्ह सी
खड़ी भीड़ को
अर्थ भरी आवाज लगाकर
दिशा दिखाओ तो जानूँ!
क्षण-क्षण की छैनी से
काटो तो जानूँ!
[‘एक उजली नजर की सुई’ से]
3.
रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
ऐरावत पर इंदर बैठे
बांट रहे टोपियां
झोलिया फैलाये लोग
भूग रहे सोटियां
वायदों की चूसणी से
छाले पड़े जीभ पर
रसोई में लाव-लाव भैरवी बजत है
रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
बोले खाली पेट की
करोड़ क्रोड़ कूडियां
खाकी वरदी वाले भोपे
भरे हैं बंदूकियां
पाखंड के राज को
स्वाहा-स्वाहा होमदे
राज के बिधाता सुण तेरे ही निमत्त है
रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
बाजरी के पिंड और
दाल की बैतरणी
थाली में परोसले
हथाली में परोसले
दाता जी के हाथ
मरोड़ कर परोसले
भूख के धरम राज यही तेरा ब्रत है
रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
[रोटी नाम सत है]
4.
बोलैनीं हेमाणी.....
जिण हाथां सूं
थें आ रेत रची है,
वां हाथां ई
म्हारै ऐड़ै उळझ्योड़ै उजाड़ में
कीं तो बीज देंवती!
थकी न थाकै
मांडै आखर,
ढाय-ढायती ई उगटावै
नूंवा अबोट,
कद सूं म्हारो
साव उघाड़ो औ तन
ईं माथै थूं
अ आ ई तो रेख देवती!
सांभ्या अतरा साज,
बिना साजिंदां
रागोळ्यां रंभावै,
वै गूंजां-अनुगूंजां
सूत्योड़ै अंतस नै जा झणकारै
सातूं नीं तो
एक सुरो
एकतारो ई तो थमा देंवती!
जिकै झरोखै
जा-जा झांकूं
दीखै सांप्रत नीलक
पण चारूं दिस
झलमल-झलमल
एकै सागै सात-सात रंग
इकरंगी कूंची ई
म्हारै मन तो फेर देंवती!
जिंयां घड़यो थें
विंयां घड़ीज्यो,
नीं आयो रच-रचणो
पण बूझण जोगो तो
राख्यो ई थें
भलै ई मत टीप
ओळियो म्हारो,
रै अणबोली
पण म्हारी रचणारी!
सैन-सैन में
इतरो ई समझादै-
कुण सै अणदीठै री बणी मारफत
राच्योड़ो राखै थूं
म्हारो जग ऐड़ो?
[‘जिण हाथां आ रेत रचीजै’ से ]
2 टिप्पणियां:
भाई शम्भू जी,
भादानी जी के बारे में इतनी सारी जानकारियां सुलभ कराने के लिए हिन्दी के इस साधारण पाठक का आभार स्वीकार करें.
मुझे लगता है कि भादानी जी का रचनाकर्म जितना महत्वपूर्ण है, उतना मान उन्हें हिन्दी जगत ने नहीं दिया है. आपने वृहत्तर हिन्दी जगत का ध्यान उनकी तरफ खींचा है, यह बहुत बढिया बात है.
अगर कभी सम्भव हो, भादानी जी की काव्य पाठ शैली की कोई बानगी भी अपने ब्लॉग पर दें.
शम्भू जी, नमस्ते। आप ने भादानी जी की कविताएँ अंतरजाल पर ला कर पाठकों को कविता के नए आयाम दिए हैं।
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